लेखनी प्रतियोगिता -06-Sep-2022
एक रोज तुम्हारे हाथों में
एक जुगनू मैंने देखा था
वो जुगनू तो फिर छूट गया
मन मेरा अब भी अटका है।
एक बार तुम्हारी आँखों का
काजल मैंने जब देखा था
उस दिन के बाद मेरी रातें
उस काजल जैसी काली हैं।
जब धोकर अपने बालों को
तुमने कपड़े से झटका था
उस पल से उसी मोड़ पर
मेरा मन पथ से भटका था।
एक रोज तुम्हे बेफिक्री से
मैंने हंसते देखा था
जैसे सुंदर गुलाब की मुझपर
पंखुड़ियां लाखों बरस गयी।
जिस रोज तुम्हारी मोहक सी
आवाज पहली बार सुनी
मन में मेरे सन्तूर कोई
अब सुबहो शाम खनकता है।
दैनिक प्रतियोगिता हेतु
मौलिक रचना
Raziya bano
07-Sep-2022 11:06 AM
Shaandar
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Anshumandwivedi426
07-Sep-2022 11:22 AM
सहृदय धन्यवाद
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
07-Sep-2022 08:17 AM
Wahhh Wahhh विशुद्ध प्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत कविता,,, साधुवाद मित्र
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Anshumandwivedi426
07-Sep-2022 10:46 AM
कोटि कोटि धन्यवाद मित्र
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Abhinav ji
07-Sep-2022 07:36 AM
Nice 👍
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Anshumandwivedi426
07-Sep-2022 10:45 AM
धन्यवाद जी
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